Sharada Aarti | शारदा आरती | Hindi | English
हे शारदे! कहाँ तू बीणा बजा रही है |
किस मंजुज्ञान से तू जग को लुभा रही है |
किस भाव में भवानी तू मग्न हो रही है,
विनती नहीं हमारी क्यों मात सुन रही है |
आरती हिंदू पूजा का एक धार्मिक अनुष्ठान है। आरती संस्कृत शब्द ‘आरात्रिक’ से लिया गया है जिसका अर्थ पूर्ण प्रेम या भक्ति है| इसलिए आरती भगवान के प्रति पूर्ण और निरंतर प्रेम करने वाले व्यक्ति की अभिव्यक्ति है।
आरती गायन हिंदू धार्मिक का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। पूजा या पूजन जिसमें भगवान या देवी को घी का दीपक या कपूर का प्रकाश अर्पित की जाती है, तथा आरती गाई जाती है। आरती करने का उद्देश्य विनम्रता और कृतज्ञता की भावना से देवताओं के समक्ष प्रकाश पुंजों का लहराना है, इस प्रकार श्रद्धापूर्वक अनुयायी भगवान के दिव्य रूप में डूब जाते हैं।
दुनियाँ में सबसे ज्यादा लोकप्रिय आरती ओम जय जगदीश हरे पं. श्रद्धाराम फिल्लौरी द्वारा सन् १८७० में लिखी गई थी।
हे शारदे! कहाँ तू बीणा बजा रही है |
किस मंजुज्ञान से तू जग को लुभा रही है |
किस भाव में भवानी तू मग्न हो रही है,
विनती नहीं हमारी क्यों मात सुन रही है |
ॐ जय जगदानन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी ।
ब्रह्मा हरिहर शंकर रेवा शिव, हरि शंकर रुद्री पालन्ती॥
॥ ॐ जय जय जगदानन्दी..॥
ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे, स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के, भण्डार कुबेर भरे।
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे…॥
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े, स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
दैत्य दानव मानव से, कई-कई युद्ध लड़े ॥
आरती अतिपावन पुरान की ।
धर्म-भक्ति-विज्ञान-खान की ॥
महापुराण भागवत निर्मल ।
शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल ॥
शीश गंग अर्धंग पार्वती, सदा विराजत कैलासी ।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी ॥
शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह, बैठे हैं शिव अविनाशी ।
करत गान गन्धर्व सप्त स्वर, राग रागिनी मधुरा-सी ॥
जयति जयति जग-निवास, शंकर सुखकारी ॥
अजर अमर अज अरूप, सत चित आनंदरूप,
व्यापक ब्रह्मस्वरूप, भव! भव-भय-हारी ॥
जयति जयति जग-निवास, शंकर सुखकारी ॥
अभयदान दीजै दयालु प्रभु सकल सृष्टिके हितकारी ।
भोलेनाथ भक्त-दुखगंजन भवभंजन शुभ सुखकारी ॥
दीनदयालु कृपालु कालरिपु अलखनिरंजन शिव योगी ।
मंगल रूप अनूप छबीले अखिल भुवनके तुम भोगी ॥
हरि कर दीपक, बजावें संख सुरपति,
गनपति झाँझ, भैरों झालर झरत हैं ।
नारदके कर बीन, सारदा गावत जस,
चारिमुख चारि वेद बिधि उचरत हैं ॥
हर हर हर महादेव ॥
सत्य, सनातन, सुन्दर शिव! सबके स्वामी ।
अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी ॥
हर हर हर महादेव ॥
ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं कुपया जगदीशा ॥
हर हर हर महादेव ॥ १॥
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रुमविपिने ।
गुञ्जति मधुकरपुञ्जे कुञ्जवने गहने ॥