होली रंगो का त्यौहार है। हालांकि इस त्योहार की परम्परा हिंदुओं से जुड़ी हुई है। लेकिन होली को विदेशों में भी मनाया जाता है। अपने आप में कई संस्कृतियां और परम्पराओं को समेटे हुए रंगों का ये त्योहार आपसी प्रेम और एकता का प्रतीक है।
भारत को शुरू से विभिन्नताओं का देश कहा जाता है। भारत में कई तरह की संस्कृति और परम्पराओं का संगम है। इन संस्कृति और परम्पराओं की झलक हमें भारतीय त्योहारों में देखने को मिलती है।
होली देश की संस्कृति का परिचय
विभिन्नताओं के देश भारत में होली को कई अलग अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है। होली एक ऐसा त्योहार है, जिसमें आपको कई प्रकार की संस्कृति और परम्पराएं देखने को मिल जाएंगी। चूकि होली रंगों का त्योहार है इसीलिए रंगों का इस्तेमाल तो हर जगह होता ही है। लेकिन उसके साथ इस त्योहार को मनाने के लिए कई परम्पराएं निभाई जाती हैं। जो भारत के अलावा विदेशों में भी बहुत मशहूर हैं।
आज हम अपने इस आर्टिकल में आपको यहीं बताएंगे कि भारत में कितने प्रकार की होली मनाई जाती है और कैसे मनाई जाती है। इस आर्टिकल को पढ़कर आपको समझ में आएगा कि कैसे और क्यों भारत को विभिन्नताओं का देश कहा जाता है।
लठ मार होली
राधा के गांव बरसाना में आपको लठ मार होली की परम्परा देखने को मिलेगी। होली खेलने का ये तरीका सबसे अलग होता है। दरअसल, इसमें पुरूष, महिलाओं को रंग लगाते हैं और महिलाएं उन्हें लठ यानी डंडे मारती हैं।
बरसाना, ब्रज यानी मथुरा का एक गांव हैं। जहां राधा का जन्म हुआ था। इस संस्कृति के चलन को श्री-कृष्ण राधा की प्रेम कहानी से जोड़ा जाता है।
राधा के गांव होली खेलने जाते थे श्रीकृष्ण
मान्यता है कि होली के दिन नंदगांव के श्रीकृष्ण अपने ग्वाले सखाओं के साथ राधा के गांव बरसाना जाया करते थे। उनपर रंग डालते थे और ठिठोली करते थे। जिससे गुस्सा होकर राधा और उनकी सखियां उन पर डंडों से वार किया करती थीं। बस, यहीं से ही इस परम्परा की शुरूआत हुई थी। लठ मार होली में नंदगांव के पुरूष और बरसाना की महिलाएं भाग लेती हैं। हंसी-ठिठोली से भरपूर लठमार होली में पुरूष खुद को डंडों से बचाते हैं और महिलाओं को उनके रंगों से बचना होता है।
विदेशी भी आते हैं यहां की होली देखने
दिलचस्प बात ये है कि डंडे खाने के बाद भी किसी को चोट नहीं लगती और कोई भी पुरूष बुरा नहीं मानता है। अगर किसी को छोटी-मोटी चोट लग भी जाती है तो मिट्टी लगाकर फिर से खेलना शुरू कर देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि लोग विदेशों से भी इस होली की परम्परा को देखने के लिए आते हैं।
राख वाली होली
हर कोई जानता है कि होली के त्योहार पर बनारस इंद्रधनुषी रंगों जैसा रंग जाता है। लेकिन कई लोगों को यहां की पम्परा के बारे में नहीं पता होगा। इतिहास से भी पुराना शहर बनारस हमेशा ही अपनी प्राचीन परम्पराओं को निभाता रहा है। और ऐसा ही कुछ होली के त्योहार पर भी देखने को मिलता है।
सदियों से चला आ रहा है रिवाज
चूकि ये भोलेनाथ ही नगरी है इसीलिए यहां भांग और गांजा का तड़का न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता लेकिन इसके साथ साथ यहां राख से होली खेलने का भी चलन है। ये रिवाज़ सदियों से चलता आ रहा है।
हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है कि फाल्गुन के शुल्क एकादशी के ही दिन भगवान शिव माता गौरी को विदा कराकर लाए थे। जिसके बाद खुशी में उन्होंने मणिकर्णिका के घाट पर चिता की भस्म के साथ होली खेली थी। इसीलिए वहां आज भी लोग इसी घाट पर बाबा भोलेनाथ के जयकारे लगाते हुए राख के साथ होली खेलते हैं।
अनोखी परंपरा सिखाती है एक सबक
राख में गुलाल को भी मिश्रित किया जाता है। दरअसल, ये अनोखी परम्परा दर्शाती है कि मृत्यु का भय नहीं होना चाहिए बल्कि ये तो मोक्ष का एक रास्ता है।
हाथी महोत्सव वाली होली
राजस्थान को यहां की संस्कृति और विशिष्टता के लिए जाना जाता है। इसीलिए यहां की होली भी सबसे अनोखी होती है। गुलाबी शहर जयपुर में होली के त्योहार को बहुत धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। हाथी उत्सव के नाम से जानी-जाने वाली होली यहां की शान-ओ-शौकत को दर्शाती है।
पुराने जमाने की छटा दिखती है महोत्सव में
ऐसा माना जाता है कि पुराने ज़माने में रज़वाड़े हाथी पर बैठकर शाही होली खेलते थे बस यही से इस परम्परा की शुरूआत हुई और हाथी पर बैठकर लोग अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। इसका ऩजारा वास्तव में अद्वितीय और अविश्वसनीय होता है। हाथियों की परेड के साथ साथ होली पर जयपुर में ब्यूटी-कॉन्टेस्ट, रस्साकशी जैसी कई प्रतियोगिताएं होती हैं। अब इससे अधिक असामान्य क्या हो सकता है!
होली में पक्के रंग का इस्तेमाल
होली मनाने वाले लोग पक्के रंग का इस्तेमाल करते हैं। असल में इस पक्के रंग का भी भारत की पौराणिक कथाओं से एक रिश्ता है। प्राचीन भारतीय सस्कृंति और धार्मिक अनुष्ठानों का हमेशा से ही प्रकृति से गहरा नाता रहा है। इसलिए पुराने समय में प्राकृतिक रंगों और जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करके पक्के रंग बनाए जाते थे। इस वजह से आजकल भी लोग होली मनाने के लिए पक्के रंगों का इस्तेमाल करते हैं।
आज के जमाने के पक्के रंग हैं हानिकारक
हालांकि, ये पक्के रंगों वाली होली की परम्परा तो पुरानी है लेकिन आज के मॉडर्न कल्चर में रंगों को तैयार करने के लिए हानिकारिक कैमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। मार्केट में बिकने वाले ज़्यादातर होली के रंगों में क्रोमियम, सिलिका, लेड, और धातु ऑक्साइड जैसे कैमिकल्स इस्तेमाल होते हैं। जो कैंसर का भी कारण बन सकते हैं। इसीलिए पुरानी संस्कृति को निभाने के लिए प्राकृतिक रंगों को ही इस्तेमाल करें न कि कैमिकल्स वाले रंगों का।
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