होलिका दहन | वरदान के बावजूद क्यों जल गई होलिका?

होलिका दहन के साथ ही होली की शुरुआत होती है। कथाओं के मुताबिक भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। वहीं, प्रह्लाद के पिता हिरणकश्यप को विष्णु फूटी आंख नहीं सुहाते थे। इस वजह से उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु की पूजा करने से कई बार मना किया और ना मानने पर उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दीं।

हिरणकश्यप का मानना था कि वह खुद भगवान है और विष्णु की उनके सामने कोई हस्ती नहीं है। बार-बार प्रह्लाद के अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना करने पर हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका को कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर जलती हुई आग में बैठ जाए, ताकि उसकी मृत्यु हो जाए। इस दौरान दिलचस्प बात ये थी कि होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। यही वजह रही कि हिरणकश्यप अपने मंसूबों को कामयाब होता देख रहा था।

क्यों करते हैं होलिका दहन?

शास्त्रों के अनुसार, होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए मनाया जाता है। इसके पीछे एक कथा है जिसमें सबसे ज्यादा प्रचलित है कि जब होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर लड़कियों के गट्ठर पर बैठकर खुद को आग के हवाले ये सोचकर कर देती है कि प्रहलाद भस्म हो जाएगा जबकि वरदान के कारण वो बच जाएगी। मगर ऐसा नहीं हुआ इसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे।

कौन थी होलीका?

होलिका कश्यप ऋषि की पुत्री और हिरण्यकश्यप की बहन थीं। होलिका को आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था लेकिन वे अक्सर इसका दुर्पयोग करती थी। बुराई पर अच्छाई की जीत के बाद से पूरे देश में हर साल इस राक्षसी को जलाने की प्रथा शुरु हुई और लोग जलती हुई होलिका में खेतों से जो चने और गेहूं की बालियां होते हैं उन्हें भी भूनते हैं। भुनने के पीछे का अर्थ ये है कि सबसे पहले हम अपने देवताओं को आहूतियां देते हैं। आहूतियां अग्नि में दी जाती है और उसके बाद प्रसाद के रूप में सभी अपने-अपने घर ले जाते हैं। इसके बाद से ही गेहूं, जौ जैसे कई अनाजों की कटाई प्रारंभ हो जाती है।

वरदान के बावजूद होलिका जल क्यों गई?

अब सवाल ये है कि वरदान के बावजूद होलिका जल क्यों गई? तो इसकी वजह ये बताई जाती है कि आग से ना जलने के लिए होलिका को एक शॉल दिया गया था। लेकिन जब होलिका चिता में बैठी और आग जलना शुरू हुई तो वो शॉल भक्त प्रह्लाद के शरीर पर लिपट गया और होलिका जलकर खाख हो गई और प्रह्लाद बच गए।

वहीं, दूसरी कहानियों में इसको लेकर अलग कारण बताए जाते हैं। उनमें बताया गया है कि होलिका को वरदान था कि जब वह अकेली आग में बैठेगी तभी वह नहीं जलेगी और अगर किसी और के साथ बैठी तो वरदान निष्फल हो जाएगा। चूंकि, उस दिन वह प्रह्लाद के साथ बैठी थी इसलिए वह जल गई। यही वजह रही कि आग में बैठने वाले प्रह्लाद को तो भगवान विष्णु ने बचा लिया लेकिन होलिका जलकर खाख हो गई।

महीनों के हिसाब से बात करें तो ये फाल्गुन शुक्ल अष्टमी की बात है। जिसे अंग्रेजी महीनों में मार्च का महीना कहते हैं। यही कारण है कि होलिका दहन किया जाता है। होली के त्योहार से ये संदेश दिया जाता है कि भगवान हमेशा ही अपने भक्तजनों की रक्षा करते हैं। राजस्थान के कोकापुर की होलिका दहन काफी फेमस है। वैसे ये परंपरा पूरे देश में मनाई जाती है।

यह भी देखेंअजीब हैं यह होली की परंपराएं

Leave a Comment